ट्रंप टैरिफ:- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कच्चे तेल और व्यापार पर दबाव बनाने वाला टैरिफ गेम (Trump Tariffs) अब वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुँच गया है। पहले भारत ने ट्रंप के दबाव को नकारते हुए रूस से तेल खरीदने की अपनी नीति बनाए रखी, और अब चीन ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठाया है, जिससे अमेरिकी प्रशासन को तगड़ा झटका लगा है।
भारत ने दिया ट्रंप को झटका
ट्रंप प्रशासन ने रूस और ईरान से तेल न खरीदने की कड़ी चेतावनी दी थी, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार ही पूरा करेगा। इसके परिणामस्वरूप, ट्रंप को बड़ा झटका लगा, क्योंकि भारत ने अपने ऊर्जा आयात के लिए रूस को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया।
चीन का भी तगड़ा जवाब
भारत के बाद, चीन ने भी अपने ऊर्जा आपूर्ति को लेकर अमेरिका के दबाव को नकारा। चीन ने अपने विदेश मंत्रालय के माध्यम से स्पष्ट किया कि वह अपनी संप्रभुता, सुरक्षा, और विकास हितों को सर्वोपरि मानता है। चीन ने यह भी कहा कि दबाव से कोई भी परिणाम नहीं निकलेगा और वह अपनी ऊर्जा आपूर्ति के लिए अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा।
अमेरिका का इरादा: रूस और ईरान की अर्थव्यवस्था को कमजोर करना
अमेरिका का उद्देश्य रूस और ईरान की तेल आयात को खत्म करना है, ताकि इन देशों की अर्थव्यवस्था को दबाया जा सके। ट्रंप का मानना है कि तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने से रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने में मदद मिलेगी। अमेरिका चाहता है कि अन्य देशों, खासकर चीन और भारत, रूस और ईरान से तेल खरीदने को बंद करें। लेकिन चीन और भारत ने साफ कर दिया कि वे अपने देशों के हितों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएंगे।
क्या होगा आगे?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका अपनी रणनीति को किस दिशा में मोड़ेगा, खासकर जब भारत और चीन जैसे बड़े देशों ने उसे झटका दिया है। कच्चे तेल का व्यापार केवल इन देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि मिडिल ईस्ट सहित कई देशों की अर्थव्यवस्था इससे जुड़ी हुई है।
नया मोड़
कुल मिलाकर, कच्चे तेल के व्यापार में यह नया मोड़ अमेरिका, रूस, चीन और भारत के बीच शक्ति परीक्षण के रूप में सामने आया है। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि किस देश की नीति आगे बढ़ती है, और कच्चे तेल के बाजार में किसकी धाक रहेगी।