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Mughal Tax System कौन-कौन से TAX लेते थे मुगल? फसल से सड़क तक के जरिए भरा जाता था सल्तनत का खजाना

Mughal Tax System:- मुगलों ने भारत में 1526 से 1857 तक शासन किया और इस दौरान उन्होंने एक विशाल खजाना इकठ्ठा किया। इस खजाने का मुख्य स्रोत विभिन्न प्रकार के टैक्स थे जो मुगल साम्राज्य के तहत वसूले जाते थे। इन टैक्सों के माध्यम से राज्य के कामकाज और आर्थिक गतिविधियों का संचालन होता था। आइए जानते हैं मुगल काल में वसूले गए प्रमुख टैक्स के बारे में।

1. खराज (भूमि कर)
यह टैक्स कृषि भूमि पर लगाया जाता था और इसकी दरें फसल की उत्पादकता और जमीन की गुणवत्ता के आधार पर तय की जाती थीं। खराज का एक हिस्सा राज्य के खजाने में जमा होता था और इसे जिहत भी कहा जाता था।

2. जकात (धार्मिक कर)
यह एक धार्मिक टैक्स था जो मुसलमानों से लिया जाता था। जकात की दरें आम तौर पर 2.5% होती थीं और यह अमीरों से वसूला जाता था। इसका उद्देश्य गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना था।

3. जजिया (गैर-मुस्लिमों पर कर)
यह टैक्स गैर-मुस्लिमों पर लगाया जाता था। जजिया का मकसद राज्य के खजाने में रेवेन्यू कलेक्शन करना था और यह टैक्स मुस्लिम शासकों द्वारा लगाया जाता था।

4. चौथ (सुरक्षा कर)
चौथ एक प्रकार का सुरक्षा कर था जिसे व्यापारियों और जमींदारों से वसूला जाता था। इस टैक्स का उद्देश्य राज्य के सुरक्षा कार्यों और प्रशासनिक खर्चों के लिए धन इकट्ठा करना था।

5. राहदारी (टोल टैक्स)
यह टैक्स उन व्यापारियों और यात्रियों से वसूला जाता था जो सामान लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे। राहदारी का उद्देश्य सड़कों और व्यापार मार्गों के रखरखाव के लिए धन जुटाना था।

6. नजराना
यह एक तरह का उपहार या भेंट होता था, जो राजा या राज्य के अधिकारियों को दिया जाता था। यह टैक्स तो नहीं था, लेकिन राज्य के अधिकारियों से मिलने या किसी विशेष अवसर पर नजराना देने की परंपरा थी।

7. कटरापार्चा टैक्स
व्यापारियों और कारीगरों से रेशम जैसे उत्पादों पर कटरापार्चा टैक्स वसूला जाता था, जो बाजार शुल्क से अलग होता था। यह एक प्रकार का उत्पादन आधारित कर था।

8. ज़ब्त टैक्स
यह भी एक प्रकार का लैंड टैक्स था जो मुगलों द्वारा शुरू किया गया था। यह जमीन के मूल्य की एक निश्चित वैल्यूएशन पर आधारित होता था, जिसे राज्य द्वारा वसूला जाता था।

निष्कर्ष

मुगल साम्राज्य के दौरान विभिन्न प्रकार के टैक्स वसूले जाते थे, जिनसे राज्य को आवश्यक राजस्व प्राप्त होता था। इन टैक्सों से न केवल राज्य की आर्थिक गतिविधियाँ सुचारू रूप से चलती थीं, बल्कि यह साम्राज्य के प्रशासनिक और सुरक्षा खर्चों को भी पूरा करते थे। मुगल काल में इन टैक्सों ने सल्तनत के खजाने को समृद्ध किया और साम्राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया।

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